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Book 6 in English

The Mahabharata in Sanskrit

Book 6
Chapter 112

  1 [स]
      अभिमन्युर महाराज तव पुत्रम अयॊधयत
      महत्या सेनया युक्तॊ भीष्महेतॊः पराक्रमी
  2 दुर्यॊधनॊ रणे कार्ष्णिं नवभिर नव पर्वभिः
      आजघान रणे करुद्धः पुनश चैनं तरिभिः शरैः
  3 तस्य शक्तिं रणे कार्ष्णिर मृत्यॊर घॊराम इव सवसाम
      परेषयाम आस संक्रुद्धॊ दुर्यॊधन रथं परति
  4 ताम आपतन्तीं सहसा घॊररूपां विशां पते
      दविधा चिच्छेद ते पुत्रः कषुरप्रेण महारथः
  5 तां शक्तिं पतितां दृष्ट्वा कार्ष्णिः परमकॊपनः
      दुर्यॊधनं तरिभिर बाणैर बाह्वॊर उरसि चार्पयत
  6 पुनश चैनं शरैर घॊरैर आजघान सतनान्तरे
      दशभिर भरतश्रेष्ठ दुर्यॊधनम अमर्षणम
  7 तद युद्धम अभवद घॊरं चित्ररूपं च भारत
      ईक्षितृप्रीतिजननं सर्वपार्थिवपूजितम
  8 भीष्मस्य निधनार्थाय पार्थस्य विजयाय च
      युयुधाते रणे वीरौ सौभद्र कुरुपुंगवौ
  9 सात्यकिं रभसं युद्धे दरौणिर बराह्मणपुंगवः
      आजघानॊरसि करुद्धॊ नाराचेन परंतपः
  10 शैनेयॊ ऽपि गुरॊः पुत्रं सर्वमर्मसु भारत
     अताडयद अमेयात्मा नवभिः कङ्कपत्रिभिः
 11 अश्वत्थामा तु समरे सात्यकिं नवभिः शरैः
     तरिंशता च पुनस तूर्णं बाह्वॊर उरसि चार्पयत
 12 सॊ ऽतिविद्धॊ महेष्वासॊ दरॊणपुत्रेण सात्वतः
     दरॊणपुत्रं तरिभिर बाणैर आजघान महायशाः
 13 पौरवॊ धृष्टकेतुं च शरैर आसाद्य संयुगे
     बहुधा दारयां चक्रे महेष्वासं महारथम
 14 तथैव पौरवं युद्धे धृष्टकेतुर महारथः
     तरिंशता निशितैर बाणैर विव्याध सुमहाबलः
 15 पौरवस तु धनुश छित्त्वा धृष्टकेतॊर महारथः
     ननाद बलवन नादं विव्याध दशभिः शरैः
 16 सॊ ऽनयत कार्मुकम आदाय पौरवं निशितैः शरैः
     आजघान महाराज तरिसप्तत्या शिलीमुखैः
 17 तौ तु तत्र महेष्वासौ महामात्रौ महारथौ
     महता शरवर्षेण परस्परम अवर्षताम
 18 अन्यॊन्यस्य धनुश छित्त्वा हयान हत्वा च भारत
     विरथाव असियुद्धाय संगतौ तौ महारथौ
 19 आर्षभे चर्मणी चित्रे शतचन्द्र परिष्कृते
     तारका शतचित्रौ च निस्त्रिंशौ सुमहाप्रभौ
 20 परगृह्य विमलौ राजंस ताव अन्यॊन्यम अभिद्रुतौ
     वाशिता संगमे यत्तौ सिंहाव इव महावने
 21 मण्डलानि विचित्राणि गतप्रत्यागतानि च
     चेरतुर दर्शयन्तौ च परार्थयन्तौ परस्परम
 22 पौरवॊ धृष्टकेतुं तु शङ्खदेशे महासिना
     ताडयाम आस संक्रुद्धस तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत
 23 चेदिराजॊ ऽपि समरे पौरवं पुरुषर्षभम
     आजघान शिताग्रेण जत्रु देशे महासिना
 24 ताव अन्यॊन्यं महाराज समासाद्य महाहवे
     अन्यॊन्यवेगाभिहतौ निपेततुर अरिंदमौ
 25 ततः सवरथम आरॊप्य पौरवं तनयस तव
     जयत्सेनॊ रथे राजन्न अपॊवाह रणाजिरात
 26 धृष्टकेतुं च समरे माद्रीपुत्रः परंतपः
     अपॊवाह रणे राजन सहदेवः परतापवान
 27 चित्रसेनः सुशर्माणं विद्ध्वा नवभिर आशुगैः
     पुनर विव्याध तं षष्ट्या पुनश च नवभिः शरैः
 28 सुशर्मा तु रणे करुद्धस तव पुत्रं विशां पते
     दशभिर दशभिश चैव विव्याध निशितैः शरैः
 29 चित्रसेनश च तं राजंस तरिंशता नतपर्वणाम
     आजघान रणे करुद्धः स च तं परत्यविध्यत
     भीष्मस्य समरे राजन यशॊ मानं च वर्धयन
 30 सौभद्रॊ राजपुत्रं तु बृहद्बलम अयॊधयत
     आर्जुनिं कॊसलेन्द्रस तु विद्ध्वा पञ्चभिर आयसैः
     पुनर विव्याध विंशत्या शरैः संनतपर्वभिः
 31 बृहद्बलं च सौभद्रॊ विद्ध्वा नवभिर आयसैः
     नाकम्पयत संग्रामे विव्याध च पुनः पुनः
 32 कौसल्यस्य पुनश चापि धनुश चिच्छेद फाल्गुणिः
     आजघान शरैश चैव तरिंशता कङ्कपत्रिभिः
 33 सॊ ऽनयत कार्मुकम आदाय राजपुत्रॊ बृहद्बलः
     फाल्गुणिं समरे करुद्धॊ विव्याधबहुभिः शरैः
 34 तयॊर युद्धं समभवद भीष्महेतॊः परंतप
     संरब्धयॊर महाराज समरे चित्रयॊधिनॊः
     यथा देवासुरे युद्धे मय वासवयॊर अभूत
 35 भीमसेनॊ गजानीकं यॊधयन बह्व अशॊभत
     यथा शक्रॊ वज्रपाणिर दारयन पर्वतॊत्तमान
 36 ते वध्यमाना भीमेन मातङ्गा गिरिसंनिभाः
     निपेतुर उर्व्यां सहिता नादयन्तॊ वसुंधराम
 37 गिरिमात्रा हि ते नागा भिन्नाञ्जनचयॊपमाः
     विरेजुर वसुधां पराप्य विकीर्णा इव पर्वतः
 38 युधिष्ठिरॊ महेष्वासॊ मद्रराजानम आहवे
     महत्या सेनया गुप्तं पीडयाम आस संगतः
 39 मद्रेश्वरश च समरे धर्मपुत्रं महारथम
     पीडयाम आस संरब्धॊ भीष्महेतॊः पराक्रमी
 40 विराटं सैन्धवॊ राजा विद्ध्वा संनतपर्वभिः
     नवभिः सायकैस तीक्ष्णैस तरिंशता पुनर अर्दयत
 41 विराटश च महाराज सैन्धवं वाहिनीमुखे
     तरिंशता निशितैर बाणैर आजघान सतनान्तरे
 42 चित्रकार्मुकनिस्त्रिंशौ चित्रवर्मायुध धवजौ
     रेजतुश चित्ररूपौ तौ संग्रामे मत्स्यसैन्धवौ
 43 दरॊणः पाञ्चाल पुत्रेण समागम्य महारणे
     महासमुदयं चक्रे शरैः संनतपर्वभिः
 44 ततॊ दरॊणॊ महाराज पार्षतस्य महद धनुः
     छित्त्वा पञ्चाशतेषूणां पार्षतं समविध्यत
 45 सॊ ऽनयत कार्मुकम आदाय पार्षतः परवीरहा
     दरॊणस्य मिषतॊ युद्धे परेषयाम आस सायकान
 46 ताञ शराञ शरसंघैस तु संनिवार्य महारथः
     दरॊणॊ दरुपदपुत्राय पराहिणॊत पञ्च सायकान
 47 तस्य करुद्धॊ महाराज पार्षतः परवीरहा
     दरॊणाय चिक्षेप गदां यमदण्डॊपमं रणे
 48 ताम आपतन्तीं सहसा हेमपट्ट विभूषिताम
     शरैः पञ्चाशता दरॊणॊ वारयाम आस संयुगे
 49 सा छिन्ना बहुधा राजन दरॊण चापच्युतैः शरैः
     चूर्णीकृता विशीर्यन्ती पपात वसुधातले
 50 गदां विनिहतां दृष्ट्वा पार्षतः शत्रुसूदनः
     दरॊणाय शक्तिं चिक्षेप सर्वपारशवीं शुभाम
 51 तां दरॊणॊ नवभिर बाणैश चिच्छेद युधि भारत
     पार्षतं च महेष्वासं पीडयाम आस संयुगे
 52 एवम एतन महद युद्धं दरॊण पार्षतयॊर अभूत
     भीष्मं परति महाराज घॊररूपां भयानकम
 53 अर्जुनः पराप्य गाङ्गेयं पीडयन निशितैः शरैः
     अभ्यद्रवत संयत्तं वने मत्तम इव दविपम
 54 परत्युद्ययौ च तं पार्थं भगदत्तः परतापवान
     तरिधा भिन्नेन नागेन मदान्धेन महाबलः
 55 तम आपतन्तं सहसा महेन्द्र गजसंनिभम
     परं यत्नं समास्थाय बीभत्सुः परत्यपद्यत
 56 ततॊ गजगतॊ राजा भगदत्तः परतापवान
     अर्जुनं शरवर्षेण वारयाम आस संयुगे
 57 अर्जुनस तु रणे नागम आयान्तं रजतॊपमम
     विमलैर आयसैस तीक्ष्णैर अविध्यत महारणे
 58 शिखण्डिनं च कौन्तेयॊ याहि याहीत्य अचॊदयत
     भीष्मं परति महाराज जह्य एनम इति चाब्रवीत
 59 पराग्ज्यॊतिषस ततॊ हित्वा पाण्डवं पाण्डुपूर्वज
     परययौ तवरितॊ राजन दरुपदस्य रथं परति
 60 ततॊ ऽरजुनॊ महाराज भीष्मम अभ्यद्रवद दरुतम
     शिखण्डिनं पुरस्कृत्य ततॊ युद्धम अवर्तत
 61 ततस ते तावकाः शूराः पाण्डवं रभसं रणे
     सर्वे ऽभयधावन करॊशन्तस तद अद्भुतम इवाभवत
 62 नानाविधान्य अनीकानि पुत्राणां ते जनाधिप
     अर्जुनॊ वयधमत काले दिवीवाभ्राणि मारुतः
 63 शिखण्डी तु समासाद्य भरतानां पितामहम
     इषुभिस तूर्णम अव्यग्रॊ बहुभिः स समाचिनॊत
 64 सॊमकांश च रणे भीष्मॊ जघ्ने पार्थ पदानुगान
     नयवारयत सैन्यं च पाण्डवानां महारथः
 65 रथाग्न्यगारश चापार्चिर असिशक्तिगदेन्धनः
     शरसंघ महाज्वालः कषत्रियान समरे ऽदहत
 66 यथा हि सुमहान अग्निः कक्षे चरति सानिलः
     तथा जज्वाल भीष्मॊ ऽपि दिव्यान्य अस्त्राण्य उदीरयन
 67 सुवर्णपुङ्खैर इषुभिः शितैः संनतपर्वभिः
     नादयन स दिशॊ भीष्मः परदिशश च महायशाः
 68 पातयन रथिनॊ राजन गजांश च सह सादिभिः
     मुण्डतालवनानीव चकार स रथव्रजान
 69 निर्मनुष्यान रथान राजन गजान अश्वांश च संयुगे
     चकार स तदा भीष्मः सर्वशस्त्रभृतां वरः
 70 तस्य जयातलनिर्घॊषं विस्फूर्जितम इवाशनेः
     निशम्य सर्वतॊ राजन समकम्पन्त सैनिकाः
 71 अमॊघा हय अपतन बाणाः पितुस ते मनुजेश्वर
     नासज्जन्त शरीरेषु भीष्मचापच्युताः शराः
 72 निर्मनुष्यान रथान राजन सुयुक्ताञ जवनैर हयैः
     वातायमानान पश्याम हरियमाणान विशां पते
 73 चेदिकाशिकरूषाणां सहस्राणि चतुर्दश
     महारथाः समाख्याताः कुलु पुत्रास तनुत्यजः
 74 अपरावर्तिनः शूराः सुवर्णविकृतध्वजाः
     संग्रामे भीष्मम आसाद्य स वाजिरथकुञ्जराः
     जग्मुस ते परलॊकाय वयादितास्यम इवान्तकम
 75 न तत्रासीन महाराज सॊमकानां महारथः
     यः संप्राप्य रणे भीष्मं जीविते सम मनॊ दधे
 76 तांश च सर्वान रणे यॊधान परेतराजपुरं परति
     नीतान अमन्यन्त जना दृष्ट्वा भीष्मस्य विक्रमम
 77 न कश चिद एनं समरे परत्युद्याति महारथः
     ऋते पाण्डुसुतं वीरं शवेताश्वं कृष्णसारथिम
     शिखण्डिनं च समरे पाञ्चाल्यम अमितौजसम
 78 शिखण्डी तु रणे भीष्मम आसाद्य भरतर्षभ
     दशभिर दशभिर बाणैर आजघान महाहवे
 79 शिखण्डिनं तु गाङ्गेयः करॊधदीप्तेन चक्षुषा
     अवैक्षत कटाक्षेण निर्दहन्न इव भारत
 80 सत्रीत्वं तत संस्मरन राजन सर्वलॊकस्य पश्यतः
     न जघान रणे भीष्मः स च तं नावबुद्धवान
 81 अर्जुनस तु महाराज शिखण्डिनम अभाषत
     अभित्वरस्व तवरितॊ जहि चैनं पितामहम
 82 किं ते विवक्षया वीर जहि भीष्मं महारथम
     न हय अन्यम अनुपश्यामि कं चिद यौधिष्ठिरे बले
 83 यः शक्तः समरे भीष्मं यॊधयेत पितामहम
     ऋते तवां पुरुषव्याघ्र सत्यम एतद बरवीमि ते
 84 एवम उक्तस तु पार्थेन शिखण्डी भरतर्षभ
     शनैर नानाविधैस तूर्णं पितामहम उपाद्रवत
 85 अचिन्तयित्वा तान बाणान पिता देवव्रतस तव
     अर्जुनं समरे करुद्धं वारयाम आस सायकैः
 86 तथैव च चमूं सर्वां पाण्डवानां महारथः
     अप्रैषीत समरे तीक्ष्णैः परलॊकाय मारिष
 87 तथैव पाण्डवा राजन सैन्येन महता वृताः
     भीष्मं परच्छादयाम आसुर मेघा इव दिवाकरम
 88 स समन्तात परिवृतॊ भारतॊ भरतर्षभ
     निर्ददाह रणे शूरान वनं वह्निर इव जवलन
 89 तताद्भुतम अपश्याम तव पुत्रस्य पौरुषम
     अयॊधयत यत पार्थं जुगॊप च यतव्रतम
 90 कर्मणा तेन समरे तव पुत्रस्य धन्विनः
     दुःशासनस्य तुतुषुः सर्वे लॊका महात्मनः
 91 यद एकः समरे पार्थान सानुगान समयॊधयत
     न चैनं पाण्डवा युद्धे वायराम आसुर उल्बणम
 92 दुःशासनेन समरे रथिनॊ विरथी कृताः
     सादिनश च महाराज दन्तिनश च महाबलाः
 93 विनिर्भिन्नाः शरैस तीक्ष्णैर निपेतुर धरणीतले
     शरातुरास तथैवान्ये दन्तिनॊ विद्रुता दिशः
 94 यथाग्निर इन्धनं पराप्य जवलेद दीप्तार्चिर उल्बणः
     तथा जज्वाल पुत्रस ते पाण्डवान वै विनिर्दहन
 95 तं भारत महामात्रं पाण्डवानां महारथः
     जेतुं नॊत्सहते कश चिन नाप्य उद्यातुं कथं चन
     ऋते महेन्द्र तनयं शवेताश्वं कृष्णसारथिम
 96 स हि तं समरे राजन विजित्य विजयॊ ऽरजुनः
     भीष्मम एवाभिदुद्राव सर्वसैन्यस्य पश्यतः
 97 विजितस तव पुत्रॊ ऽपि भीष्म बाहुव्यपाश्रयः
     पुनः पुनः समाश्वस्य परायुध्यत रणॊत्कटः
     अर्जुनं च रणे राजन यॊधयन स वयराजत
 98 शिखण्डी तु रणे राजन विव्याधैव पितामहम
     शरैर अशनिसंस्पर्शैस तथा सर्पविषॊपमैः
 99 न च ते ऽसय रुजं चक्रुः पितुस तव जनेश्वर
     समयमानश च गाङ्गेयस तान बाणाञ जगृहे तदा
 100 उष्णार्थॊ हि नरॊ यद्वज जलधाराः पतीच्छति
    तथा जग्राह गाङ्गेयः शरधाराः शिखण्डिनः
101 तं कषत्रिया महाराज ददृशुर घॊरम आहवे
    भीष्मं दहन्तं सैन्यानि पाण्डवानां महात्मनाम
102 ततॊ ऽबरवीत तव सुतः सर्वसैन्यानि मारिष
    अभिद्रवत संग्रामे फल्गुनं सर्वतॊ रथैः
103 भीष्मॊ वः समरे सर्वान पलयिष्यति धर्मवित
    ते भयं सुमहत तवक्त्वा पाण्डवान परतियुध्यत
104 एष तालेन दीप्तेन भीष्मस तिष्ठति पालयन
    सर्वेषां धार्तराष्ट्राणां रणे शर्म च वर्म च
105 तरिदशापि समुद्युक्ता नालं भीष्मं समासितुम
    किम उ पार्था महात्मानं मर्त्यभूतास तथाबलाः
    तस्माद दरवत हे यॊधाः फल्गुनं पराप्य संयुगे
106 अहम अद्य रणे यत्तॊ यॊधयिष्यामि फल्गुनम
    सहितः सर्वतॊ यत्तैर भवद्भिर वसुधाधिपाः
107 तच छरुत्वा तु वचॊ राजंस तव पुत्रस्य धन्विनः
    अर्जुनं परति संयत्ता बलवन्ति महारथाः
108 ते विदेहाः कलिङ्गाश च दाशेरक गणैः सह
    अभिपेतुर निषादाश च सौवीराश च महारणे
109 बाह्लिका दरदाश चैव पराच्यॊदीच्याश च मालवाः
    अभीषाहाः शूरसेनाः शिबयॊ ऽथ वसातयः
110 शाल्वाश्रयास तरिगर्ताश च अम्बष्ठाः केकयैः सह
    अभिपेतू रणे पार्थं पतंगा इव पावकम
111 स तान सर्वान सहानीकान महाराज महारथान
    दिव्यान्य अस्त्राणि संचिन्त्य परसंधाय धनंजयः
112 स तैर अस्त्रैर महावेगैर ददाहाशु महाबलः
    शरप्रतापैर बीभत्सुः पतंगान इव पावकः
113 तस्य बाणसहस्राणि सृजतॊ दृढधन्विनः
    दीप्यमानम इवाकाशे गाण्डीवं समदृश्यत
114 ते शरार्ता महाराज विप्रकीर्णरथध्वजाः
    नाब्यवर्तन्त राजानः सहिता वानरध्वजम
115 स धवजा रथिनः पेतुर हयारॊहा हयैः सह
    गजाः सह गजारॊहैः किरीटिशरताडिताः
116 ततॊ ऽरजुन भुजॊत्सृष्टैर आवृतासीद वसुंधरा
    विद्रवद्भिश च बहुधा बलै राज्ञां समन्ततः
117 अथ पार्थॊ महाबाहुर दरावयित्वा वरूथिनीम
    दुःशासनाय समरे परेषयाम आस सायकान
118 ते तु भित्त्वा तव सुतं दुःषासनम अयॊमुखाः
    धरणीं विविशुः सर्वे वल्मीकम इव पन्नगाः
    हयांश चास्य ततॊ जघ्ने सारथिं चन्यपातयत
119 विविंशतिं च विंशत्या विरथं कृतवान परभॊ
    आजघान भृशं चैव पञ्चभिर नतपर्वभिः
120 कृपं शल्यं विकर्णं च विद्ध्वा बहुभिर आयसैः
    चकार विरथांश चैव कौन्तेयः शवेतवाहनः
121 एवं ते विरथाः पञ्च कृपः शल्यश च मारिष
    दुःशासनॊ विकर्णश च तथैव च विविंशतिः
    संप्राद्रवन्त समरे निर्जिताः सव्यसाचिना
122 पूर्वाह्णे तु तथा राजन पराजित्य महारथान
    परजज्वाल रणे पार्थॊ विधूम इव पावकः
123 तथैव शरवर्षेण भास्करॊ रश्मिवान इव
    अन्यान अपि महाराज पातयाम आस पार्थिवान
124 पराङ्मुखी कृत्यतदा शरवर्षैर महारथान
    परावर्तयत संग्रामे शॊणितॊदां महानदीम
    मध्येन कुरुसैन्यानां पाण्डवानां च भारत
125 गजाश च रथसंघाश च बहुधा रथिभिर हताः
    रथाश च निहता नागैर नागा हयपदातिभिः
126 अन्तरा छिध्यमानानि शरीराणि शिरांसि च
    निपेतुर दिक्षु सर्वासु गजाश्वरथयॊधिनाम
127 छन्नम आयॊधनं रेजे कुण्डलाङ्गद धारिभिः
    पतितैः पात्यमानैश च राजपुत्रैर महारथैः
128 रथनेमि निकृत्ताश च गजैश चैवावपॊथिताः
    पादाताश चाप्य अदृश्यन्त साश्वाः सहयसादिनः
129 गजाश्वरथसंघाश च परिपेतुः समन्ततः
    विशीर्णाश च रथा भूमौ भग्नचक्रयुगध्वजाः
130 तद गजाश्वरथौघानां रुधिरेण समुक्षितम
    छन्नम आयॊधनं रेजे रक्ताभ्रम इव शारदम
131 शवानः काकाश च गृध्राश च वृका गॊमायुभिः सह
    परणेदुर भक्ष्यम आसाद्य विकृताश च मृगद्विजाः
132 ववुर बहुविधाश चैव दिक्षु सर्वासु मारुताः
    दृश्यमानेषु रक्षःसु भूतेषु विनदत्सु च
133 काञ्चनानि च दामानि पताकाश च महाधनाः
    धूमायमाना दृश्यन्ते सहसा मारुतेरिताः
134 शवेतच छत्रसहस्राणि स धवजाश च महारथाः
    विनिकीर्णाः सम दृश्यन्ते शतशॊ ऽथ सहस्रशः
    स पताकाश च मातङ्गा दिशॊ जग्मुः शरातुराः
135 कषत्रियाश च मनुष्येन्द्र गदा शक्तिधनुर्धराः
    समन्ततॊ वयदृश्यन्त पतिता धरणीतले
136 ततॊ भीष्मॊ महाराज दिव्यम अस्त्रम उदीरयन
    अभ्यधावत कौन्तेयं मिषतां सर्वधन्विनाम
137 तं शिखण्डी रणे यत्तम अभ्यधावत दंशितः
    संजहार ततॊ भीष्मस तद अस्त्रं पावकॊपमम
138 एतस्मिन्न एव काले तु कौन्तेयः शवेतवाहनः
    निजघ्ने तावकं सैन्यं मॊहयित्वा पितामहम
  1 [s]
      abhimanyur mahārāja tava putram ayodhayat
      mahatyā senayā yukto bhīṣmahetoḥ parākramī
  2 duryodhano raṇe kārṣṇiṃ navabhir nava parvabhiḥ
      ājaghāna raṇe kruddhaḥ punaś cainaṃ tribhiḥ śaraiḥ
  3 tasya śaktiṃ raṇe kārṣṇir mṛtyor ghorām iva svasām
      preṣayām āsa saṃkruddho duryodhana rathaṃ prati
  4 tām āpatantīṃ sahasā ghorarūpāṃ viśāṃ pate
      dvidhā ciccheda te putraḥ kṣurapreṇa mahārathaḥ
  5 tāṃ śaktiṃ patitāṃ dṛṣṭvā kārṣṇiḥ paramakopanaḥ
      duryodhanaṃ tribhir bāṇair bāhvor urasi cārpayat
  6 punaś cainaṃ śarair ghorair ājaghāna stanāntare
      daśabhir bharataśreṣṭha duryodhanam amarṣaṇam
  7 tad yuddham abhavad ghoraṃ citrarūpaṃ ca bhārata
      īkṣitṛprītijananaṃ sarvapārthivapūjitam
  8 bhīṣmasya nidhanārthāya pārthasya vijayāya ca
      yuyudhāte raṇe vīrau saubhadra kurupuṃgavau
  9 sātyakiṃ rabhasaṃ yuddhe drauṇir brāhmaṇapuṃgavaḥ
      ājaghānorasi kruddho nārācena paraṃtapaḥ
  10 śaineyo 'pi guroḥ putraṃ sarvamarmasu bhārata
     atāḍayad ameyātmā navabhiḥ kaṅkapatribhiḥ
 11 aśvatthāmā tu samare sātyakiṃ navabhiḥ śaraiḥ
     triṃśatā ca punas tūrṇaṃ bāhvor urasi cārpayat
 12 so 'tividdho maheṣvāso droṇaputreṇa sātvataḥ
     droṇaputraṃ tribhir bāṇair ājaghāna mahāyaśāḥ
 13 pauravo dhṛṣṭaketuṃ ca śarair āsādya saṃyuge
     bahudhā dārayāṃ cakre maheṣvāsaṃ mahāratham
 14 tathaiva pauravaṃ yuddhe dhṛṣṭaketur mahārathaḥ
     triṃśatā niśitair bāṇair vivyādha sumahābalaḥ
 15 pauravas tu dhanuś chittvā dhṛṣṭaketor mahārathaḥ
     nanāda balavan nādaṃ vivyādha daśabhiḥ śaraiḥ
 16 so 'nyat kārmukam ādāya pauravaṃ niśitaiḥ śaraiḥ
     ājaghāna mahārāja trisaptatyā śilīmukhaiḥ
 17 tau tu tatra maheṣvāsau mahāmātrau mahārathau
     mahatā śaravarṣeṇa parasparam avarṣatām
 18 anyonyasya dhanuś chittvā hayān hatvā ca bhārata
     virathāv asiyuddhāya saṃgatau tau mahārathau
 19 ārṣabhe carmaṇī citre śatacandra pariṣkṛte
     tārakā śatacitrau ca nistriṃśau sumahāprabhau
 20 pragṛhya vimalau rājaṃs tāv anyonyam abhidrutau
     vāśitā saṃgame yattau siṃhāv iva mahāvane
 21 maṇḍalāni vicitrāṇi gatapratyāgatāni ca
     ceratur darśayantau ca prārthayantau parasparam
 22 pauravo dhṛṣṭaketuṃ tu śaṅkhadeśe mahāsinā
     tāḍayām āsa saṃkruddhas tiṣṭha tiṣṭheti cābravīt
 23 cedirājo 'pi samare pauravaṃ puruṣarṣabham
     ājaghāna śitāgreṇa jatru deśe mahāsinā
 24 tāv anyonyaṃ mahārāja samāsādya mahāhave
     anyonyavegābhihatau nipetatur ariṃdamau
 25 tataḥ svaratham āropya pauravaṃ tanayas tava
     jayatseno rathe rājann apovāha raṇājirāt
 26 dhṛṣṭaketuṃ ca samare mādrīputraḥ paraṃtapaḥ
     apovāha raṇe rājan sahadevaḥ pratāpavān
 27 citrasenaḥ suśarmāṇaṃ viddhvā navabhir āśugaiḥ
     punar vivyādha taṃ ṣaṣṭyā punaś ca navabhiḥ śaraiḥ
 28 suśarmā tu raṇe kruddhas tava putraṃ viśāṃ pate
     daśabhir daśabhiś caiva vivyādha niśitaiḥ śaraiḥ
 29 citrasenaś ca taṃ rājaṃs triṃśatā nataparvaṇām
     ājaghāna raṇe kruddhaḥ sa ca taṃ pratyavidhyata
     bhīṣmasya samare rājan yaśo mānaṃ ca vardhayan
 30 saubhadro rājaputraṃ tu bṛhadbalam ayodhayat
     ārjuniṃ kosalendras tu viddhvā pañcabhir āyasaiḥ
     punar vivyādha viṃśatyā śaraiḥ saṃnataparvabhiḥ
 31 bṛhadbalaṃ ca saubhadro viddhvā navabhir āyasaiḥ
     nākampayata saṃgrāme vivyādha ca punaḥ punaḥ
 32 kausalyasya punaś cāpi dhanuś ciccheda phālguṇiḥ
     ājaghāna śaraiś caiva triṃśatā kaṅkapatribhiḥ
 33 so 'nyat kārmukam ādāya rājaputro bṛhadbalaḥ
     phālguṇiṃ samare kruddho vivyādhabahubhiḥ śaraiḥ
 34 tayor yuddhaṃ samabhavad bhīṣmahetoḥ paraṃtapa
     saṃrabdhayor mahārāja samare citrayodhinoḥ
     yathā devāsure yuddhe maya vāsavayor abhūt
 35 bhīmaseno gajānīkaṃ yodhayan bahv aśobhata
     yathā śakro vajrapāṇir dārayan parvatottamān
 36 te vadhyamānā bhīmena mātaṅgā girisaṃnibhāḥ
     nipetur urvyāṃ sahitā nādayanto vasuṃdharām
 37 girimātrā hi te nāgā bhinnāñjanacayopamāḥ
     virejur vasudhāṃ prāpya vikīrṇā iva parvataḥ
 38 yudhiṣṭhiro maheṣvāso madrarājānam āhave
     mahatyā senayā guptaṃ pīḍayām āsa saṃgataḥ
 39 madreśvaraś ca samare dharmaputraṃ mahāratham
     pīḍayām āsa saṃrabdho bhīṣmahetoḥ parākramī
 40 virāṭaṃ saindhavo rājā viddhvā saṃnataparvabhiḥ
     navabhiḥ sāyakais tīkṣṇais triṃśatā punar ardayat
 41 virāṭaś ca mahārāja saindhavaṃ vāhinīmukhe
     triṃśatā niśitair bāṇair ājaghāna stanāntare
 42 citrakārmukanistriṃśau citravarmāyudha dhvajau
     rejatuś citrarūpau tau saṃgrāme matsyasaindhavau
 43 droṇaḥ pāñcāla putreṇa samāgamya mahāraṇe
     mahāsamudayaṃ cakre śaraiḥ saṃnataparvabhiḥ
 44 tato droṇo mahārāja pārṣatasya mahad dhanuḥ
     chittvā pañcāśateṣūṇāṃ pārṣataṃ samavidhyata
 45 so 'nyat kārmukam ādāya pārṣataḥ paravīrahā
     droṇasya miṣato yuddhe preṣayām āsa sāyakān
 46 tāñ śarāñ śarasaṃghais tu saṃnivārya mahārathaḥ
     droṇo drupadaputrāya prāhiṇot pañca sāyakān
 47 tasya kruddho mahārāja pārṣataḥ paravīrahā
     droṇāya cikṣepa gadāṃ yamadaṇḍopamaṃ raṇe
 48 tām āpatantīṃ sahasā hemapaṭṭa vibhūṣitām
     śaraiḥ pañcāśatā droṇo vārayām āsa saṃyuge
 49 sā chinnā bahudhā rājan droṇa cāpacyutaiḥ śaraiḥ
     cūrṇīkṛtā viśīryantī papāta vasudhātale
 50 gadāṃ vinihatāṃ dṛṣṭvā pārṣataḥ śatrusūdanaḥ
     droṇāya śaktiṃ cikṣepa sarvapāraśavīṃ śubhām
 51 tāṃ droṇo navabhir bāṇaiś ciccheda yudhi bhārata
     pārṣataṃ ca maheṣvāsaṃ pīḍayām āsa saṃyuge
 52 evam etan mahad yuddhaṃ droṇa pārṣatayor abhūt
     bhīṣmaṃ prati mahārāja ghorarūpāṃ bhayānakam
 53 arjunaḥ prāpya gāṅgeyaṃ pīḍayan niśitaiḥ śaraiḥ
     abhyadravata saṃyattaṃ vane mattam iva dvipam
 54 pratyudyayau ca taṃ pārthaṃ bhagadattaḥ pratāpavān
     tridhā bhinnena nāgena madāndhena mahābalaḥ
 55 tam āpatantaṃ sahasā mahendra gajasaṃnibham
     paraṃ yatnaṃ samāsthāya bībhatsuḥ pratyapadyata
 56 tato gajagato rājā bhagadattaḥ pratāpavān
     arjunaṃ śaravarṣeṇa vārayām āsa saṃyuge
 57 arjunas tu raṇe nāgam āyāntaṃ rajatopamam
     vimalair āyasais tīkṣṇair avidhyata mahāraṇe
 58 śikhaṇḍinaṃ ca kaunteyo yāhi yāhīty acodayat
     bhīṣmaṃ prati mahārāja jahy enam iti cābravīt
 59 prāgjyotiṣas tato hitvā pāṇḍavaṃ pāṇḍupūrvaja
     prayayau tvarito rājan drupadasya rathaṃ prati
 60 tato 'rjuno mahārāja bhīṣmam abhyadravad drutam
     śikhaṇḍinaṃ puraskṛtya tato yuddham avartata
 61 tatas te tāvakāḥ śūrāḥ pāṇḍavaṃ rabhasaṃ raṇe
     sarve 'bhyadhāvan krośantas tad adbhutam ivābhavat
 62 nānāvidhāny anīkāni putrāṇāṃ te janādhipa
     arjuno vyadhamat kāle divīvābhrāṇi mārutaḥ
 63 śikhaṇḍī tu samāsādya bharatānāṃ pitāmaham
     iṣubhis tūrṇam avyagro bahubhiḥ sa samācinot
 64 somakāṃś ca raṇe bhīṣmo jaghne pārtha padānugān
     nyavārayata sainyaṃ ca pāṇḍavānāṃ mahārathaḥ
 65 rathāgnyagāraś cāpārcir asiśaktigadendhanaḥ
     śarasaṃgha mahājvālaḥ kṣatriyān samare 'dahat
 66 yathā hi sumahān agniḥ kakṣe carati sānilaḥ
     tathā jajvāla bhīṣmo 'pi divyāny astrāṇy udīrayan
 67 suvarṇapuṅkhair iṣubhiḥ śitaiḥ saṃnataparvabhiḥ
     nādayan sa diśo bhīṣmaḥ pradiśaś ca mahāyaśāḥ
 68 pātayan rathino rājan gajāṃś ca saha sādibhiḥ
     muṇḍatālavanānīva cakāra sa rathavrajān
 69 nirmanuṣyān rathān rājan gajān aśvāṃś ca saṃyuge
     cakāra sa tadā bhīṣmaḥ sarvaśastrabhṛtāṃ varaḥ
 70 tasya jyātalanirghoṣaṃ visphūrjitam ivāśaneḥ
     niśamya sarvato rājan samakampanta sainikāḥ
 71 amoghā hy apatan bāṇāḥ pitus te manujeśvara
     nāsajjanta śarīreṣu bhīṣmacāpacyutāḥ śarāḥ
 72 nirmanuṣyān rathān rājan suyuktāñ javanair hayaiḥ
     vātāyamānān paśyāma hriyamāṇān viśāṃ pate
 73 cedikāśikarūṣāṇāṃ sahasrāṇi caturdaśa
     mahārathāḥ samākhyātāḥ kulu putrās tanutyajaḥ
 74 aparāvartinaḥ śūrāḥ suvarṇavikṛtadhvajāḥ
     saṃgrāme bhīṣmam āsādya sa vājirathakuñjarāḥ
     jagmus te paralokāya vyāditāsyam ivāntakam
 75 na tatrāsīn mahārāja somakānāṃ mahārathaḥ
     yaḥ saṃprāpya raṇe bhīṣmaṃ jīvite sma mano dadhe
 76 tāṃś ca sarvān raṇe yodhān pretarājapuraṃ prati
     nītān amanyanta janā dṛṣṭvā bhīṣmasya vikramam
 77 na kaś cid enaṃ samare pratyudyāti mahārathaḥ
     ṛte pāṇḍusutaṃ vīraṃ śvetāśvaṃ kṛṣṇasārathim
     śikhaṇḍinaṃ ca samare pāñcālyam amitaujasam
 78 śikhaṇḍī tu raṇe bhīṣmam āsādya bharatarṣabha
     daśabhir daśabhir bāṇair ājaghāna mahāhave
 79 śikhaṇḍinaṃ tu gāṅgeyaḥ krodhadīptena cakṣuṣā
     avaikṣata kaṭākṣeṇa nirdahann iva bhārata
 80 strītvaṃ tat saṃsmaran rājan sarvalokasya paśyataḥ
     na jaghāna raṇe bhīṣmaḥ sa ca taṃ nāvabuddhavān
 81 arjunas tu mahārāja śikhaṇḍinam abhāṣata
     abhitvarasva tvarito jahi cainaṃ pitāmaham
 82 kiṃ te vivakṣayā vīra jahi bhīṣmaṃ mahāratham
     na hy anyam anupaśyāmi kaṃ cid yaudhiṣṭhire bale
 83 yaḥ śaktaḥ samare bhīṣmaṃ yodhayeta pitāmaham
     ṛte tvāṃ puruṣavyāghra satyam etad bravīmi te
 84 evam uktas tu pārthena śikhaṇḍī bharatarṣabha
     śanair nānāvidhais tūrṇaṃ pitāmaham upādravat
 85 acintayitvā tān bāṇān pitā devavratas tava
     arjunaṃ samare kruddhaṃ vārayām āsa sāyakaiḥ
 86 tathaiva ca camūṃ sarvāṃ pāṇḍavānāṃ mahārathaḥ
     apraiṣīt samare tīkṣṇaiḥ paralokāya māriṣa
 87 tathaiva pāṇḍavā rājan sainyena mahatā vṛtāḥ
     bhīṣmaṃ pracchādayām āsur meghā iva divākaram
 88 sa samantāt parivṛto bhārato bharatarṣabha
     nirdadāha raṇe śūrān vanaṃ vahnir iva jvalan
 89 tatādbhutam apaśyāma tava putrasya pauruṣam
     ayodhayata yat pārthaṃ jugopa ca yatavratam
 90 karmaṇā tena samare tava putrasya dhanvinaḥ
     duḥśāsanasya tutuṣuḥ sarve lokā mahātmanaḥ
 91 yad ekaḥ samare pārthān sānugān samayodhayat
     na cainaṃ pāṇḍavā yuddhe vāyarām āsur ulbaṇam
 92 duḥśāsanena samare rathino virathī kṛtāḥ
     sādinaś ca mahārāja dantinaś ca mahābalāḥ
 93 vinirbhinnāḥ śarais tīkṣṇair nipetur dharaṇītale
     śarāturās tathaivānye dantino vidrutā diśaḥ
 94 yathāgnir indhanaṃ prāpya jvaled dīptārcir ulbaṇaḥ
     tathā jajvāla putras te pāṇḍavān vai vinirdahan
 95 taṃ bhārata mahāmātraṃ pāṇḍavānāṃ mahārathaḥ
     jetuṃ notsahate kaś cin nāpy udyātuṃ kathaṃ cana
     ṛte mahendra tanayaṃ śvetāśvaṃ kṛṣṇasārathim
 96 sa hi taṃ samare rājan vijitya vijayo 'rjunaḥ
     bhīṣmam evābhidudrāva sarvasainyasya paśyataḥ
 97 vijitas tava putro 'pi bhīṣma bāhuvyapāśrayaḥ
     punaḥ punaḥ samāśvasya prāyudhyata raṇotkaṭaḥ
     arjunaṃ ca raṇe rājan yodhayan sa vyarājata
 98 śikhaṇḍī tu raṇe rājan vivyādhaiva pitāmaham
     śarair aśanisaṃsparśais tathā sarpaviṣopamaiḥ
 99 na ca te 'sya rujaṃ cakruḥ pitus tava janeśvara
     smayamānaś ca gāṅgeyas tān bāṇāñ jagṛhe tadā
 100 uṣṇārtho hi naro yadvaj jaladhārāḥ patīcchati
    tathā jagrāha gāṅgeyaḥ śaradhārāḥ śikhaṇḍinaḥ
101 taṃ kṣatriyā mahārāja dadṛśur ghoram āhave
    bhīṣmaṃ dahantaṃ sainyāni pāṇḍavānāṃ mahātmanām
102 tato 'bravīt tava sutaḥ sarvasainyāni māriṣa
    abhidravata saṃgrāme phalgunaṃ sarvato rathaiḥ
103 bhīṣmo vaḥ samare sarvān palayiṣyati dharmavit
    te bhayaṃ sumahat tvaktvā pāṇḍavān pratiyudhyata
104 eṣa tālena dīptena bhīṣmas tiṣṭhati pālayan
    sarveṣāṃ dhārtarāṣṭrāṇāṃ raṇe śarma ca varma ca
105 tridaśāpi samudyuktā nālaṃ bhīṣmaṃ samāsitum
    kim u pārthā mahātmānaṃ martyabhūtās tathābalāḥ
    tasmād dravata he yodhāḥ phalgunaṃ prāpya saṃyuge
106 aham adya raṇe yatto yodhayiṣyāmi phalgunam
    sahitaḥ sarvato yattair bhavadbhir vasudhādhipāḥ
107 tac chrutvā tu vaco rājaṃs tava putrasya dhanvinaḥ
    arjunaṃ prati saṃyattā balavanti mahārathāḥ
108 te videhāḥ kaliṅgāś ca dāśeraka gaṇaiḥ saha
    abhipetur niṣādāś ca sauvīrāś ca mahāraṇe
109 bāhlikā daradāś caiva prācyodīcyāś ca mālavāḥ
    abhīṣāhāḥ śūrasenāḥ śibayo 'tha vasātayaḥ
110 śālvāśrayās trigartāś ca ambaṣṭhāḥ kekayaiḥ saha
    abhipetū raṇe pārthaṃ pataṃgā iva pāvakam
111 sa tān sarvān sahānīkān mahārāja mahārathān
    divyāny astrāṇi saṃcintya prasaṃdhāya dhanaṃjayaḥ
112 sa tair astrair mahāvegair dadāhāśu mahābalaḥ
    śarapratāpair bībhatsuḥ pataṃgān iva pāvakaḥ
113 tasya bāṇasahasrāṇi sṛjato dṛḍhadhanvinaḥ
    dīpyamānam ivākāśe gāṇḍīvaṃ samadṛśyata
114 te śarārtā mahārāja viprakīrṇarathadhvajāḥ
    nābyavartanta rājānaḥ sahitā vānaradhvajam
115 sa dhvajā rathinaḥ petur hayārohā hayaiḥ saha
    gajāḥ saha gajārohaiḥ kirīṭiśaratāḍitāḥ
116 tato 'rjuna bhujotsṛṣṭair āvṛtāsīd vasuṃdharā
    vidravadbhiś ca bahudhā balai rājñāṃ samantataḥ
117 atha pārtho mahābāhur drāvayitvā varūthinīm
    duḥśāsanāya samare preṣayām āsa sāyakān
118 te tu bhittvā tava sutaṃ duḥṣāsanam ayomukhāḥ
    dharaṇīṃ viviśuḥ sarve valmīkam iva pannagāḥ
    hayāṃś cāsya tato jaghne sārathiṃ canyapātayat
119 viviṃśatiṃ ca viṃśatyā virathaṃ kṛtavān prabho
    ājaghāna bhṛśaṃ caiva pañcabhir nataparvabhiḥ
120 kṛpaṃ śalyaṃ vikarṇaṃ ca viddhvā bahubhir āyasaiḥ
    cakāra virathāṃś caiva kaunteyaḥ śvetavāhanaḥ
121 evaṃ te virathāḥ pañca kṛpaḥ śalyaś ca māriṣa
    duḥśāsano vikarṇaś ca tathaiva ca viviṃśatiḥ
    saṃprādravanta samare nirjitāḥ savyasācinā
122 pūrvāhṇe tu tathā rājan parājitya mahārathān
    prajajvāla raṇe pārtho vidhūma iva pāvakaḥ
123 tathaiva śaravarṣeṇa bhāskaro raśmivān iva
    anyān api mahārāja pātayām āsa pārthivān
124 parāṅmukhī kṛtyatadā śaravarṣair mahārathān
    prāvartayata saṃgrāme śoṇitodāṃ mahānadīm
    madhyena kurusainyānāṃ pāṇḍavānāṃ ca bhārata
125 gajāś ca rathasaṃghāś ca bahudhā rathibhir hatāḥ
    rathāś ca nihatā nāgair nāgā hayapadātibhiḥ
126 antarā chidhyamānāni śarīrāṇi śirāṃsi ca
    nipetur dikṣu sarvāsu gajāśvarathayodhinām
127 channam āyodhanaṃ reje kuṇḍalāṅgada dhāribhiḥ
    patitaiḥ pātyamānaiś ca rājaputrair mahārathaiḥ
128 rathanemi nikṛttāś ca gajaiś caivāvapothitāḥ
    pādātāś cāpy adṛśyanta sāśvāḥ sahayasādinaḥ
129 gajāśvarathasaṃghāś ca paripetuḥ samantataḥ
    viśīrṇāś ca rathā bhūmau bhagnacakrayugadhvajāḥ
130 tad gajāśvarathaughānāṃ rudhireṇa samukṣitam
    channam āyodhanaṃ reje raktābhram iva śāradam
131 śvānaḥ kākāś ca gṛdhrāś ca vṛkā gomāyubhiḥ saha
    praṇedur bhakṣyam āsādya vikṛtāś ca mṛgadvijāḥ
132 vavur bahuvidhāś caiva dikṣu sarvāsu mārutāḥ
    dṛśyamāneṣu rakṣaḥsu bhūteṣu vinadatsu ca
133 kāñcanāni ca dāmāni patākāś ca mahādhanāḥ
    dhūmāyamānā dṛśyante sahasā māruteritāḥ
134 śvetac chatrasahasrāṇi sa dhvajāś ca mahārathāḥ
    vinikīrṇāḥ sma dṛśyante śataśo 'tha sahasraśaḥ
    sa patākāś ca mātaṅgā diśo jagmuḥ śarāturāḥ
135 kṣatriyāś ca manuṣyendra gadā śaktidhanurdharāḥ
    samantato vyadṛśyanta patitā dharaṇītale
136 tato bhīṣmo mahārāja divyam astram udīrayan
    abhyadhāvata kaunteyaṃ miṣatāṃ sarvadhanvinām
137 taṃ śikhaṇḍī raṇe yattam abhyadhāvata daṃśitaḥ
    saṃjahāra tato bhīṣmas tad astraṃ pāvakopamam
138 etasminn eva kāle tu kaunteyaḥ śvetavāhanaḥ
    nijaghne tāvakaṃ sainyaṃ mohayitvā pitāmaham


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