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Book 13 in English

The Mahabharata in Sanskrit

Book 13
Chapter 112

  1 [य]
      पितामह महाबाहॊ सर्वशास्त्रविशारद
      शरॊतुम इच्छामि मर्त्यानां संसारविधुम उत्तमम
  2 केन वृत्तेन राजेन्द्र वर्तमाना नरा युधि
      पराप्नुवन्त्य उत्तमं सवर्गं कथं च नरकं नृप
  3 मृतं शरीरम उत्सृज्य काष्ठलॊष्ट समं जनाः
      परयान्त्य अमुं लॊकम इतः कॊ वै तान अनुगच्छति
  4 [भ]
      असाव आयाति भगवान बृहस्पतिर उदारधीः
      पृच्छैनं सुमहाभागम एतद गुह्यं सनातनम
  5 नैतद अन्येन शक्यं हि वक्तुं केन चिद अद्य वै
      वक्ता बृहस्पतिसमॊ न हय अन्यॊ विद्यते कव चित
  6 [व]
      तयॊः संवदतॊर एवं पार्थ गाङ्गेययॊस तदा
      आजगाम विशुद्धात्मा भगवान स बृहस्पतिः
  7 ततॊ राजा समुत्थाय धृतराष्ट्र पुरॊगमः
      पूजाम अनुपमां चक्रे सर्वे ते च सभा सदः
  8 ततॊ धर्मसुतॊ राजा भगवन्तं बृहस्पतिम
      उपगम्य यथान्यायं परश्नं पप्रच्छ सुव्रतः
  9 [य]
      भगवन सव धर्मज्ञ सर्वशास्त्रविशारद
      मर्त्यस्य कः सहायॊ वै पिता माता सुतॊ गुरुः
  10 मृतं शरीरम उत्सृज्य काष्ठलॊष्ट समं जनाः
     गच्छन्त्य अमुत्र लॊकं वै क एनम अनुगच्छति
 11 [ब]
     एकः परसूतॊ राजेन्द्र जन्तुर एकॊ विनश्यति
     एकस तरति दुर्गाणि गच्छत्य एकश च दुर्गतिम
 12 असहायः पिता माता तथा भराता सुतॊ गुरुः
     जञातिसंबन्धिवर्गश च मित्रवर्गस तथैव च
 13 मृतं शरीरम उत्सृज्य काष्ठलॊष्ट समं जनाः
     मुहूर्तम उपतिष्ठन्ति ततॊ यान्ति पराङ्मुखाः
     तैस तच छरीरम उत्सृष्टं धर्म एकॊ ऽनुगच्छति
 14 तस्माद धर्मः सहायार्थे सेवितव्यः सदा नृभिः
     पराणी धर्मसमायुक्तॊ नरकायॊपपद्यते
 15 तस्मान नयायागतैर अर्थैर धर्मं सेवेत पण्डितः
     धर्म एकॊ मनुष्याणां सहायः पारलौकिकः
 16 लॊभान मॊहाद अनुक्रॊशाद भयाद वाप्य अबहुश्रुतः
     नरः करॊत्य अकार्याणि परार्थे लॊभमॊहितः
 17 धर्मश चार्थश च कामश च तरितयं जीविते फलम
     एतत तरयम अवाप्तव्यम अधर्मपरिवर्जितम
 18 [य]
     शरुतं भगवतॊ वाक्यं धर्मयुक्तं परं हितम
     शरीरविचयं जञातुं बुद्धिस तु मम जायते
 19 मृतं शरीररहितं सूक्ष्मम अव्यक्ततां गतम
     अचक्षुर विषयं पराप्तं कथं धर्मॊ ऽनुगच्छति
 20 [ब]
     पृथिवी वायुर आकाशम आपॊ जयॊतिश च पञ्चमम
     बुद्धिर आत्मा च सहिता धर्मं पश्यन्ति नित्यदा
 21 पराणिनाम इह सर्वेषां साक्षिभूतानि चानिशम
     एतैश च स ह धर्मॊ ऽपि तं जीवम अनुगच्छति
 22 तवग अस्थि मांसं शुक्रं च शॊणितं च महामते
     शरीरं वर्जयन्त्य एते जीवितेन विवर्जितम
 23 ततॊ धर्मसमायुक्तः स जीवः सुखम एधते
     इह लॊके परे चैव किं भूयः कथयामि ते
 24 [य]
     अनुदर्शितं भगवता यथा धर्मॊ ऽनुगच्छति
     एतत तु जञातुम इच्छामि कथं रेतः परवर्तते
 25 [ब]
     अन्नम अश्नन्ति ये देवाः शरीरस्था नरेश्वर
     पृथिवी वायुर आकाशम आपॊ जयॊतिर मनस तथा
 26 ततस तृप्तेषु राजेन्द्र तेषु भूतेषु पञ्चसु
     मनःषष्ठेषु शुद्धात्मन रेतः संपद्यते महत
 27 ततॊ गर्भः संभवति सत्रीपुंसॊः पार्थ संगमे
     एतत ते सर्वम आख्यातं किं भूयः शरॊतुम इच्छसि
 28 [य]
     आख्यातम एतद भवता गर्भः संजायते यथा
     यथा जातस तु पुरुषः परपद्यति तद उच्यताम
 29 [ब]
     आसन्न मात्रः सततं तैर भूतैर अभिभूयते
     विप्रमुक्तश च तैर भूतैः पुनर यात्य अपरां गतिम
     स तु भूतसमायुक्तः पराप्नुते जीव एव ह
 30 ततॊ ऽसय कर्म पश्यन्ति शुभं वा यदि वाशुभम
     देवताः पञ्च भूतस्थाः किं भूयः शरॊतुम इच्छसि
 31 [य]
     तवग अस्थि मांसम उत्सृज्य तैश च भूतैर विवर्जितः
     जीवः स भगवान कवस्थः सुखदुःखे समश्नुते
 32 [ब]
     जीवॊ धर्मसमायुक्तः शीघ्रं रेतस्त्वम आगतः
     सत्रीणां पुष्पं समासाद्य सूते कालेन भारत
 33 यमस्य पुरुषैः कलेशं यमस्य पुरुषैर वधम
     दुःखं संसारचक्रं च नरः कलेशं च विन्दति
 34 इह लॊके च स पराणी जन्मप्रभृति पार्थिव
     सवकृतं कर्म वै भुङ्क्ते धर्मस्य फलम आश्रितः
 35 यदि धर्मं यथाशक्ति जन्मप्रभृति सेवते
     ततः स पुरुषॊ भूत्वा सेवते नित्यदा सुखम
 36 अथान्तरा तु धर्मस्य अधर्मम उपसेवते
     सुखस्यानन्तरं दुःखं स जीवॊ ऽपय अधिगच्छति
 37 अधर्मेण समायुक्तॊ यमस्य विषयं गतः
     महद दुःखं समासाद्य तिर्यग्यॊनौ परजायते
 38 कर्मणा येन येनेह यस्यां यॊनौ परजायते
     जीवॊ मॊहसमायुक्तस तन मे निगदतः शृणु
 39 यद एतद उच्यते शास्त्रे सेतिहासे सच छन्दसि
     यमस्य विषयं घॊरं मर्त्यॊ लॊकः परपद्यते
 40 अधीत्य चतुरॊ वेदान दविजॊ मॊहसमन्वितः
     पतितात परतिगृह्याथ खरयॊनौ परजायते
 41 खरॊ जीवति वर्षाणि दश पञ्च च भारत
     खरॊ मृतॊ बलीवर्दः सप्त वर्षाणि जीवति
 42 बलीवर्दॊ मृतश चापि जायते बरह्मराक्षसः
     बरह्मरक्षस तु तरीन मासांस ततॊ जायति बराह्मणः
 43 पतितं याजयित्वा तु कृमियॊनौ परजायते
     तत्र जीवति वर्षाणि दश पञ्च च भारत
 44 कृमिभावात परमुक्तस तु ततॊ जायति गर्दभः
     गर्दभः पञ्चवर्षाणि पञ्चवर्षाणि सूकरः
     शवा वर्षम एकं भवति ततॊ जायति मानवः
 45 उपाध्यायस्य यः पापं शिष्यः कुर्याद अबुद्धिमान
     स जीव इह संसारांस तरीन आप्नॊति न संशयः
 46 पराक शवा भवति राजेन्द्र ततः करव्यात ततः खरः
     ततः परेतः परिक्लिष्टः पश्चाज जायति बराह्मणः
 47 मनसापि गुरॊर भार्यां यः शिष्यॊ याति पापकृत
     सॊ ऽधमान याति संसारान अधर्मेणेह चेतसा
 48 शवयॊनौ तु स संभूतस तरीणि वर्षाणि जीवति
     तत्रापि निधनं पराप्तः कृमियॊनौ परजायते
 49 कृमिभावम अनुप्राप्तॊ वर्षम एकं स जीवति
     ततस तु निधनं पराप्य बरह्मयॊनौ परजायते
 50 यदि पुत्रसमं शिष्यं गुरुर हन्याद अकारणे
     आत्मनः कामकारेण सॊ ऽपि हंसः परजायते
 51 पितरं मातरं वापि यस तु पुत्रॊ ऽवमन्यते
     सॊ ऽपि राजन मृतॊ जन्तुः पूर्वं जायति गर्दभः
 52 खरॊ जीवति मासांस तु दश शवा च चतुर्दश
     बिडालः सप्त मासांस तु ततॊ जायति मानवः
 53 माता पितरम आक्रुश्य सारिकः संप्रजायते
     ताडयित्वा तु ताव एव जायते कच्छपॊ नृप
 54 कच्छपॊ दशवर्षाणि तरीणि वर्षाणि शक्यकः
     वयालॊ भूत्वा तु षण मासांस ततॊ जायति मानुषः
 55 भर्तृपिण्डम उपाश्नन यॊ राजद्विष्टानि सेवते
     सॊ ऽपि मॊहसमापन्नॊ मृतॊ जायति वानरः
 56 वानरॊ दशवर्षाणि तरीणि वर्षाणि मूषकः
     शवा भूत्वा चाथ षण मासांस ततॊ जायति मानुषः
 57 नयासापहर्ता तु नरॊ यमस्य विषयं गतः
     संसाराणां शतं गत्वा कृमियॊनौ परजायते
 58 तत्र जीवति वर्षाणि दश पञ्च च भारत
     दुष्कृतस्य कषयं गत्वा ततॊ जायति मानुषः
 59 असूयकॊ नरश चापि मृतॊ जायति शार्ङ्गकः
     विश्वासहर्ता तु नरॊ मीनॊ जायति दुर्मतिः
 60 भूत्वा मीनॊ ऽषट वर्षाणि मृगॊ जायति भारत
     मृगस तु चतुरॊ मासांस ततश छागः परजायते
 61 छागस तु निधनं पराप्य पूर्णे संवत्सरे ततः
     कीटः संजायते जन्तुस ततॊ जायति मानुषः
 62 धान्यान यवांस तिलान माषान कुलत्थान सर्षपांश चणान
     कलायान अथ मुद्गांश च गॊधूमान अतसीस तथा
 63 सस्यस्यान्यस्य हर्ता च मॊहाज जन्तुर अचेतनः
     स जायते महाराज मूषकॊ निरपत्रपः
 64 ततः परेत्य महाराज पुनर जायति सूकरः
     सूकरॊ जातमात्रस तु रॊगेण मरियते नृप
 65 शवा ततॊ जायते मूढः कर्मणा तेन पार्थिव
     शवा भूत्वा पञ्चवर्षाणि ततॊ जायति मानुषः
 66 परदाराभिमर्शं तु कृत्वा जायति वै वृकः
     शवा सृगालस ततॊ गृध्रॊ वयालः कङ्कॊ बकस तथा
 67 भरातुर भार्यां तु दुर्बुद्धिर यॊ धर्षयति मॊहितः
     पुंस्कॊलिकत्वम आप्नॊति सॊ ऽपि संवत्सरं नृप
 68 सखिभार्यां गुरॊर भार्यां राजभार्यां तथैव च
     परधर्षयित्वा कामाद यॊ मृतॊ जायति सूकरः
 69 सूकरः पञ्चवर्षाणि पञ्चवर्षाणि शवाविधः
     पिपीलकस तु षण मासान कीटः सयान मासम एव च
     एतान आसाद्य संसारान कृमियॊनौ परजायते
 70 तत्र जीवति मासांस तु कृमियॊनौ तरयॊ दश
     ततॊ ऽधर्मक्षयं कृत्वा पुनर जायति मानुषः
 71 उपस्थिते विवाहे तु दाने यज्ञे ऽपि वाभिभॊ
     मॊहात करॊति यॊ विघ्नं स मृतॊ जायते कृमिः
 72 कृमिर जीवति वर्षाणि दश पञ्च च भारत
     अधर्मस्य कषयं कृत्वा ततॊ जायति मानुषः
 73 पूर्वं दत्त्वा तु यः कन्यां दवितीये संप्रयच्छति
     सॊ ऽपि राजन मृतॊ जन्तुः कृमियॊनौ परजायते
 74 तत्र जीवति वर्षाणि तरयॊदश युधिष्ठिर
     अधर्मसंक्षये युक्तस ततॊ जायति मानुषः
 75 देवकार्यम उपाकृत्य पितृकार्यम अथापि च
     अनिर्वाप्य समश्नन वै ततॊ जायति वायसः
 76 वायसॊ दशवर्षाणि ततॊ जायति कुक्कुटः
     जायते लवकश चापि मासं तस्मात तु मानुषः
 77 जयेष्ठं पितृसमं चापि भरातरं यॊ ऽवमन्यते
     सॊ ऽपि मृत्युम उपागम्य करौञ्चयॊनौ परजायते
 78 करौञ्चॊ जीवति मासांस तु दश दवौ सप्त पञ्च च
     ततॊ निधनम आपन्नॊ मानुषत्वम उपाश्नुते
 79 वृषलॊ बराह्मणी गत्वा कृमियॊनौ परजायते
     तत्रापत्यं समुत्पाद्य ततॊ जायति मूषकः
 80 कृतघ्नस तु मृतॊ राजन यमस्य विषयं गतः
     यमस्य विषये करुद्धैर वधं पराप्नॊति दारुणम
 81 पट्टिसं मुद्गरं शूलम अग्निकुम्भं च दारुणम
     असि पत्रवनं घॊरं वालुकां कूटशाल्मलीम
 82 एताश चान्याश च बह्वीः स यमस्य विषयं गतः
     यातनाः पराप्य तत्रॊग्रास ततॊ वध्यति भारत
 83 संसारचक्रम आसाद्य कृमियॊनौ परजायते
     कृमिर भवति वर्षाणि दश पञ्च च भारत
     ततॊ गर्भं समासाद्य तत्रैव मरियते शिशुः
 84 ततॊ गर्भशतैर जन्तुर बहुभिः संप्रजायते
     संसारांश च बहून गत्वा ततस तिर्यक परजायते
 85 मृतॊ दुःखम अनुप्राप्य बहुवर्षगणान इह
     अपुनर्भाव संयुक्तस ततः कूर्मः परजायते
 86 अशस्त्रं पुरुषं हत्वा स शस्त्रः पुरुषाधमः
     अर्थार्थी यदि वा वैरी स मृतॊ जायते खरः
 87 खरॊ जीवति वर्षे दवे ततः शास्तेण वध्यते
     स मृतॊ मृगयॊनौ तु नित्यॊद्विग्नॊ ऽभिजायते
 88 मृगॊ वध्यति शस्त्रेण गते संवत्सरे तु सः
     हतॊ मृगस ततॊ मीनः सॊ ऽपि जालेन बध्यते
 89 मासे चतुर्थे संप्राप्ते शवापदः संप्रजायते
     शवापदॊ दशवर्षाणि दवीपी वर्षाणि पञ्च च
 90 ततस तु निधनं पराप्तः कालपर्याय चॊदितः
     अधर्मस्य कषयं कृत्वा ततॊ जायति मानुषः
 91 सत्रियं हत्वा तु दुर्बुद्धिर यमस्य विषयं गतः
     बहून कलेशान समासाद्य संसारांश चैव विंशतिम
 92 ततः पश्चान महाराज कृमियॊनौ परजायते
     कृमिर विंशतिवर्षाणि भूत्वा जायति मानुषः
 93 भॊजनं चॊरयित्वा तु मक्षिका जायते नरः
     मक्षिका संह वशगॊ बहून मासान भवत्य उत
     ततः पापक्षयं कृत्वा मानुषत्वम अवाप्नुते
 94 वाद्यं हृत्वा तु पुरुषॊ मशकः संप्रजायते
     तथा पिण्याक संमिश्रम अशनं चॊरयेन नरः
     स जायते बभ्रु समॊ दारुणॊ मूषकॊ नरः
 95 लवणं चॊरयित्वा तु चीरी वाकः परजायते
     दधि हृत्वा बकश चापि पलवॊ मत्स्यान असंस्कृतान
 96 चॊरयित्वा पयश चापि बलाका संप्रजायते
     यस तु चॊरयते तैलं तैलपायी परजायते
     चॊरयित्वा तु दुर्बुद्धिर मधु दंशः परजायते
 97 अयॊ हृत्वा तु दुर्बुद्धिर वायसॊ जायते नरः
     पायसं चॊरयित्वा तु तित्तिरित्वम अवाप्नुते
 98 हृत्वा पैष्टम अपूपं च कुम्भॊलूकः परजायते
     फलं वा मूलकं हृत्वा अपूपं वा पिपीलिकः
 99 कांस्यं हृत्वा तु दुर्बुद्धिर हारीतॊ जायते नरः
     राजतं भाजनं हृत्वा कपॊतः संप्रजायते
 100 हृत्वा तु काञ्चनं भाण्डं कृमियॊनौ परजायते
    करौञ्चः कार्पासिकं हृत्वा मृतॊ जायति मानवः
101 चॊरयित्वा नरः पट्टं तव आविकं वापि भारत
    कषौमं च वस्त्रम आदाय शशॊ जन्तुः परजायते
102 वर्णान हृत्वा तु पुरुषॊ मृतॊ जायति बर्हिणः
    हृत्वा रक्तानि वस्त्राणि जायते जीव जीविकः
103 वर्णकादींस तथा गन्धांश चॊरयित्वा तु मानवः
    छुच्छुन्दरित्वम आप्नॊति राजँल लॊभपरायणः
104 विश्वासेन तु निक्षिप्तं यॊ निह्नवति मानवः
    स गतासुर नरस तादृङ मत्स्ययॊनौ परजायते
105 मत्स्ययॊनिम अनुप्राप्य मृतॊ जायति मानुषः
    मानुषत्वम अनुप्राप्य कषीणायुर उपपद्यते
106 पापानि तु नरः कृत्वा तिर्यग जायति भारत
    न चात्मनः परमाणं ते धर्मं जानन्ति किं चन
107 ये पापानि नराः कृत्वा निरस्यन्ति वरतैः सदा
    सुखदुःखसमायुक्ता वयाधितास ते भवन्त्य उत
108 असंवासाः परजायन्ते मलेच्छाश चापि न संशयः
    नराः पापसमाचारा लॊभमॊहसमन्विताः
109 वर्जयन्ति च पापानि जन्मप्रभृति ये नराः
    अरॊगा रूपवन्तस ते धनिनश च भवन्त्य उत
110 सत्रियॊ ऽपय एतेन कल्पेन कृत्वा पापम अवाप्नुयुः
    एतेषाम एव जन्तूनां पत्नीत्वम उपयान्ति ताः
111 परस्वहरणे दॊषाः सर्व एव परकीर्तिताः
    एतद वै लेश मात्रेण कथितं ते मयानघ
    अपरस्मिन कथा यॊगे भूयः शरॊष्यसि भारत
112 एतन मया महाराज बरह्मणॊ वदतः पुरा
    सुरर्षीणां शरुतं मध्ये पृष्टश चापि यथातथम
113 मयापि तव कार्त्स्न्येन यथावद अनुवर्णितम
    एतच छरुत्वा महाराज धर्मे कुरु मनः सदा
  1 [y]
      pitāmaha mahābāho sarvaśāstraviśārada
      śrotum icchāmi martyānāṃ saṃsāravidhum uttamam
  2 kena vṛttena rājendra vartamānā narā yudhi
      prāpnuvanty uttamaṃ svargaṃ kathaṃ ca narakaṃ nṛpa
  3 mṛtaṃ śarīram utsṛjya kāṣṭhaloṣṭa samaṃ janāḥ
      prayānty amuṃ lokam itaḥ ko vai tān anugacchati
  4 [bh]
      asāv āyāti bhagavān bṛhaspatir udāradhīḥ
      pṛcchainaṃ sumahābhāgam etad guhyaṃ sanātanam
  5 naitad anyena śakyaṃ hi vaktuṃ kena cid adya vai
      vaktā bṛhaspatisamo na hy anyo vidyate kva cit
  6 [v]
      tayoḥ saṃvadator evaṃ pārtha gāṅgeyayos tadā
      ājagāma viśuddhātmā bhagavān sa bṛhaspatiḥ
  7 tato rājā samutthāya dhṛtarāṣṭra purogamaḥ
      pūjām anupamāṃ cakre sarve te ca sabhā sadaḥ
  8 tato dharmasuto rājā bhagavantaṃ bṛhaspatim
      upagamya yathānyāyaṃ praśnaṃ papraccha suvrataḥ
  9 [y]
      bhagavan sava dharmajña sarvaśāstraviśārada
      martyasya kaḥ sahāyo vai pitā mātā suto guruḥ
  10 mṛtaṃ śarīram utsṛjya kāṣṭhaloṣṭa samaṃ janāḥ
     gacchanty amutra lokaṃ vai ka enam anugacchati
 11 [b]
     ekaḥ prasūto rājendra jantur eko vinaśyati
     ekas tarati durgāṇi gacchaty ekaś ca durgatim
 12 asahāyaḥ pitā mātā tathā bhrātā suto guruḥ
     jñātisaṃbandhivargaś ca mitravargas tathaiva ca
 13 mṛtaṃ śarīram utsṛjya kāṣṭhaloṣṭa samaṃ janāḥ
     muhūrtam upatiṣṭhanti tato yānti parāṅmukhāḥ
     tais tac charīram utsṛṣṭaṃ dharma eko 'nugacchati
 14 tasmād dharmaḥ sahāyārthe sevitavyaḥ sadā nṛbhiḥ
     prāṇī dharmasamāyukto narakāyopapadyate
 15 tasmān nyāyāgatair arthair dharmaṃ seveta paṇḍitaḥ
     dharma eko manuṣyāṇāṃ sahāyaḥ pāralaukikaḥ
 16 lobhān mohād anukrośād bhayād vāpy abahuśrutaḥ
     naraḥ karoty akāryāṇi parārthe lobhamohitaḥ
 17 dharmaś cārthaś ca kāmaś ca tritayaṃ jīvite phalam
     etat trayam avāptavyam adharmaparivarjitam
 18 [y]
     śrutaṃ bhagavato vākyaṃ dharmayuktaṃ paraṃ hitam
     śarīravicayaṃ jñātuṃ buddhis tu mama jāyate
 19 mṛtaṃ śarīrarahitaṃ sūkṣmam avyaktatāṃ gatam
     acakṣur viṣayaṃ prāptaṃ kathaṃ dharmo 'nugacchati
 20 [b]
     pṛthivī vāyur ākāśam āpo jyotiś ca pañcamam
     buddhir ātmā ca sahitā dharmaṃ paśyanti nityadā
 21 prāṇinām iha sarveṣāṃ sākṣibhūtāni cāniśam
     etaiś ca sa ha dharmo 'pi taṃ jīvam anugacchati
 22 tvag asthi māṃsaṃ śukraṃ ca śoṇitaṃ ca mahāmate
     śarīraṃ varjayanty ete jīvitena vivarjitam
 23 tato dharmasamāyuktaḥ sa jīvaḥ sukham edhate
     iha loke pare caiva kiṃ bhūyaḥ kathayāmi te
 24 [y]
     anudarśitaṃ bhagavatā yathā dharmo 'nugacchati
     etat tu jñātum icchāmi kathaṃ retaḥ pravartate
 25 [b]
     annam aśnanti ye devāḥ śarīrasthā nareśvara
     pṛthivī vāyur ākāśam āpo jyotir manas tathā
 26 tatas tṛpteṣu rājendra teṣu bhūteṣu pañcasu
     manaḥṣaṣṭheṣu śuddhātman retaḥ saṃpadyate mahat
 27 tato garbhaḥ saṃbhavati strīpuṃsoḥ pārtha saṃgame
     etat te sarvam ākhyātaṃ kiṃ bhūyaḥ śrotum icchasi
 28 [y]
     ākhyātam etad bhavatā garbhaḥ saṃjāyate yathā
     yathā jātas tu puruṣaḥ prapadyati tad ucyatām
 29 [b]
     āsanna mātraḥ satataṃ tair bhūtair abhibhūyate
     vipramuktaś ca tair bhūtaiḥ punar yāty aparāṃ gatim
     sa tu bhūtasamāyuktaḥ prāpnute jīva eva ha
 30 tato 'sya karma paśyanti śubhaṃ vā yadi vāśubham
     devatāḥ pañca bhūtasthāḥ kiṃ bhūyaḥ śrotum icchasi
 31 [y]
     tvag asthi māṃsam utsṛjya taiś ca bhūtair vivarjitaḥ
     jīvaḥ sa bhagavān kvasthaḥ sukhaduḥkhe samaśnute
 32 [b]
     jīvo dharmasamāyuktaḥ śīghraṃ retastvam āgataḥ
     strīṇāṃ puṣpaṃ samāsādya sūte kālena bhārata
 33 yamasya puruṣaiḥ kleśaṃ yamasya puruṣair vadham
     duḥkhaṃ saṃsāracakraṃ ca naraḥ kleśaṃ ca vindati
 34 iha loke ca sa prāṇī janmaprabhṛti pārthiva
     svakṛtaṃ karma vai bhuṅkte dharmasya phalam āśritaḥ
 35 yadi dharmaṃ yathāśakti janmaprabhṛti sevate
     tataḥ sa puruṣo bhūtvā sevate nityadā sukham
 36 athāntarā tu dharmasya adharmam upasevate
     sukhasyānantaraṃ duḥkhaṃ sa jīvo 'py adhigacchati
 37 adharmeṇa samāyukto yamasya viṣayaṃ gataḥ
     mahad duḥkhaṃ samāsādya tiryagyonau prajāyate
 38 karmaṇā yena yeneha yasyāṃ yonau prajāyate
     jīvo mohasamāyuktas tan me nigadataḥ śṛṇu
 39 yad etad ucyate śāstre setihāse sac chandasi
     yamasya viṣayaṃ ghoraṃ martyo lokaḥ prapadyate
 40 adhītya caturo vedān dvijo mohasamanvitaḥ
     patitāt pratigṛhyātha kharayonau prajāyate
 41 kharo jīvati varṣāṇi daśa pañca ca bhārata
     kharo mṛto balīvardaḥ sapta varṣāṇi jīvati
 42 balīvardo mṛtaś cāpi jāyate brahmarākṣasaḥ
     brahmarakṣas tu trīn māsāṃs tato jāyati brāhmaṇaḥ
 43 patitaṃ yājayitvā tu kṛmiyonau prajāyate
     tatra jīvati varṣāṇi daśa pañca ca bhārata
 44 kṛmibhāvāt pramuktas tu tato jāyati gardabhaḥ
     gardabhaḥ pañcavarṣāṇi pañcavarṣāṇi sūkaraḥ
     śvā varṣam ekaṃ bhavati tato jāyati mānavaḥ
 45 upādhyāyasya yaḥ pāpaṃ śiṣyaḥ kuryād abuddhimān
     sa jīva iha saṃsārāṃs trīn āpnoti na saṃśayaḥ
 46 prāk śvā bhavati rājendra tataḥ kravyāt tataḥ kharaḥ
     tataḥ pretaḥ parikliṣṭaḥ paścāj jāyati brāhmaṇaḥ
 47 manasāpi guror bhāryāṃ yaḥ śiṣyo yāti pāpakṛt
     so 'dhamān yāti saṃsārān adharmeṇeha cetasā
 48 śvayonau tu sa saṃbhūtas trīṇi varṣāṇi jīvati
     tatrāpi nidhanaṃ prāptaḥ kṛmiyonau prajāyate
 49 kṛmibhāvam anuprāpto varṣam ekaṃ sa jīvati
     tatas tu nidhanaṃ prāpya brahmayonau prajāyate
 50 yadi putrasamaṃ śiṣyaṃ gurur hanyād akāraṇe
     ātmanaḥ kāmakāreṇa so 'pi haṃsaḥ prajāyate
 51 pitaraṃ mātaraṃ vāpi yas tu putro 'vamanyate
     so 'pi rājan mṛto jantuḥ pūrvaṃ jāyati gardabhaḥ
 52 kharo jīvati māsāṃs tu daśa śvā ca caturdaśa
     biḍālaḥ sapta māsāṃs tu tato jāyati mānavaḥ
 53 mātā pitaram ākruśya sārikaḥ saṃprajāyate
     tāḍayitvā tu tāv eva jāyate kacchapo nṛpa
 54 kacchapo daśavarṣāṇi trīṇi varṣāṇi śakyakaḥ
     vyālo bhūtvā tu ṣaṇ māsāṃs tato jāyati mānuṣaḥ
 55 bhartṛpiṇḍam upāśnan yo rājadviṣṭāni sevate
     so 'pi mohasamāpanno mṛto jāyati vānaraḥ
 56 vānaro daśavarṣāṇi trīṇi varṣāṇi mūṣakaḥ
     śvā bhūtvā cātha ṣaṇ māsāṃs tato jāyati mānuṣaḥ
 57 nyāsāpahartā tu naro yamasya viṣayaṃ gataḥ
     saṃsārāṇāṃ śataṃ gatvā kṛmiyonau prajāyate
 58 tatra jīvati varṣāṇi daśa pañca ca bhārata
     duṣkṛtasya kṣayaṃ gatvā tato jāyati mānuṣaḥ
 59 asūyako naraś cāpi mṛto jāyati śārṅgakaḥ
     viśvāsahartā tu naro mīno jāyati durmatiḥ
 60 bhūtvā mīno 'ṣṭa varṣāṇi mṛgo jāyati bhārata
     mṛgas tu caturo māsāṃs tataś chāgaḥ prajāyate
 61 chāgas tu nidhanaṃ prāpya pūrṇe saṃvatsare tataḥ
     kīṭaḥ saṃjāyate jantus tato jāyati mānuṣaḥ
 62 dhānyān yavāṃs tilān māṣān kulatthān sarṣapāṃś caṇān
     kalāyān atha mudgāṃś ca godhūmān atasīs tathā
 63 sasyasyānyasya hartā ca mohāj jantur acetanaḥ
     sa jāyate mahārāja mūṣako nirapatrapaḥ
 64 tataḥ pretya mahārāja punar jāyati sūkaraḥ
     sūkaro jātamātras tu rogeṇa mriyate nṛpa
 65 śvā tato jāyate mūḍhaḥ karmaṇā tena pārthiva
     śvā bhūtvā pañcavarṣāṇi tato jāyati mānuṣaḥ
 66 paradārābhimarśaṃ tu kṛtvā jāyati vai vṛkaḥ
     śvā sṛgālas tato gṛdhro vyālaḥ kaṅko bakas tathā
 67 bhrātur bhāryāṃ tu durbuddhir yo dharṣayati mohitaḥ
     puṃskolikatvam āpnoti so 'pi saṃvatsaraṃ nṛpa
 68 sakhibhāryāṃ guror bhāryāṃ rājabhāryāṃ tathaiva ca
     pradharṣayitvā kāmād yo mṛto jāyati sūkaraḥ
 69 sūkaraḥ pañcavarṣāṇi pañcavarṣāṇi śvāvidhaḥ
     pipīlakas tu ṣaṇ māsān kīṭaḥ syān māsam eva ca
     etān āsādya saṃsārān kṛmiyonau prajāyate
 70 tatra jīvati māsāṃs tu kṛmiyonau trayo daśa
     tato 'dharmakṣayaṃ kṛtvā punar jāyati mānuṣaḥ
 71 upasthite vivāhe tu dāne yajñe 'pi vābhibho
     mohāt karoti yo vighnaṃ sa mṛto jāyate kṛmiḥ
 72 kṛmir jīvati varṣāṇi daśa pañca ca bhārata
     adharmasya kṣayaṃ kṛtvā tato jāyati mānuṣaḥ
 73 pūrvaṃ dattvā tu yaḥ kanyāṃ dvitīye saṃprayacchati
     so 'pi rājan mṛto jantuḥ kṛmiyonau prajāyate
 74 tatra jīvati varṣāṇi trayodaśa yudhiṣṭhira
     adharmasaṃkṣaye yuktas tato jāyati mānuṣaḥ
 75 devakāryam upākṛtya pitṛkāryam athāpi ca
     anirvāpya samaśnan vai tato jāyati vāyasaḥ
 76 vāyaso daśavarṣāṇi tato jāyati kukkuṭaḥ
     jāyate lavakaś cāpi māsaṃ tasmāt tu mānuṣaḥ
 77 jyeṣṭhaṃ pitṛsamaṃ cāpi bhrātaraṃ yo 'vamanyate
     so 'pi mṛtyum upāgamya krauñcayonau prajāyate
 78 krauñco jīvati māsāṃs tu daśa dvau sapta pañca ca
     tato nidhanam āpanno mānuṣatvam upāśnute
 79 vṛṣalo brāhmaṇī gatvā kṛmiyonau prajāyate
     tatrāpatyaṃ samutpādya tato jāyati mūṣakaḥ
 80 kṛtaghnas tu mṛto rājan yamasya viṣayaṃ gataḥ
     yamasya viṣaye kruddhair vadhaṃ prāpnoti dāruṇam
 81 paṭṭisaṃ mudgaraṃ śūlam agnikumbhaṃ ca dāruṇam
     asi patravanaṃ ghoraṃ vālukāṃ kūṭaśālmalīm
 82 etāś cānyāś ca bahvīḥ sa yamasya viṣayaṃ gataḥ
     yātanāḥ prāpya tatrogrās tato vadhyati bhārata
 83 saṃsāracakram āsādya kṛmiyonau prajāyate
     kṛmir bhavati varṣāṇi daśa pañca ca bhārata
     tato garbhaṃ samāsādya tatraiva mriyate śiśuḥ
 84 tato garbhaśatair jantur bahubhiḥ saṃprajāyate
     saṃsārāṃś ca bahūn gatvā tatas tiryak prajāyate
 85 mṛto duḥkham anuprāpya bahuvarṣagaṇān iha
     apunarbhāva saṃyuktas tataḥ kūrmaḥ prajāyate
 86 aśastraṃ puruṣaṃ hatvā sa śastraḥ puruṣādhamaḥ
     arthārthī yadi vā vairī sa mṛto jāyate kharaḥ
 87 kharo jīvati varṣe dve tataḥ śāsteṇa vadhyate
     sa mṛto mṛgayonau tu nityodvigno 'bhijāyate
 88 mṛgo vadhyati śastreṇa gate saṃvatsare tu saḥ
     hato mṛgas tato mīnaḥ so 'pi jālena badhyate
 89 māse caturthe saṃprāpte śvāpadaḥ saṃprajāyate
     śvāpado daśavarṣāṇi dvīpī varṣāṇi pañca ca
 90 tatas tu nidhanaṃ prāptaḥ kālaparyāya coditaḥ
     adharmasya kṣayaṃ kṛtvā tato jāyati mānuṣaḥ
 91 striyaṃ hatvā tu durbuddhir yamasya viṣayaṃ gataḥ
     bahūn kleśān samāsādya saṃsārāṃś caiva viṃśatim
 92 tataḥ paścān mahārāja kṛmiyonau prajāyate
     kṛmir viṃśativarṣāṇi bhūtvā jāyati mānuṣaḥ
 93 bhojanaṃ corayitvā tu makṣikā jāyate naraḥ
     makṣikā saṃha vaśago bahūn māsān bhavaty uta
     tataḥ pāpakṣayaṃ kṛtvā mānuṣatvam avāpnute
 94 vādyaṃ hṛtvā tu puruṣo maśakaḥ saṃprajāyate
     tathā piṇyāka saṃmiśram aśanaṃ corayen naraḥ
     sa jāyate babhru samo dāruṇo mūṣako naraḥ
 95 lavaṇaṃ corayitvā tu cīrī vākaḥ prajāyate
     dadhi hṛtvā bakaś cāpi plavo matsyān asaṃskṛtān
 96 corayitvā payaś cāpi balākā saṃprajāyate
     yas tu corayate tailaṃ tailapāyī prajāyate
     corayitvā tu durbuddhir madhu daṃśaḥ prajāyate
 97 ayo hṛtvā tu durbuddhir vāyaso jāyate naraḥ
     pāyasaṃ corayitvā tu tittiritvam avāpnute
 98 hṛtvā paiṣṭam apūpaṃ ca kumbholūkaḥ prajāyate
     phalaṃ vā mūlakaṃ hṛtvā apūpaṃ vā pipīlikaḥ
 99 kāṃsyaṃ hṛtvā tu durbuddhir hārīto jāyate naraḥ
     rājataṃ bhājanaṃ hṛtvā kapotaḥ saṃprajāyate
 100 hṛtvā tu kāñcanaṃ bhāṇḍaṃ kṛmiyonau prajāyate
    krauñcaḥ kārpāsikaṃ hṛtvā mṛto jāyati mānavaḥ
101 corayitvā naraḥ paṭṭaṃ tv āvikaṃ vāpi bhārata
    kṣaumaṃ ca vastram ādāya śaśo jantuḥ prajāyate
102 varṇān hṛtvā tu puruṣo mṛto jāyati barhiṇaḥ
    hṛtvā raktāni vastrāṇi jāyate jīva jīvikaḥ
103 varṇakādīṃs tathā gandhāṃś corayitvā tu mānavaḥ
    chucchundaritvam āpnoti rājaṁl lobhaparāyaṇaḥ
104 viśvāsena tu nikṣiptaṃ yo nihnavati mānavaḥ
    sa gatāsur naras tādṛṅ matsyayonau prajāyate
105 matsyayonim anuprāpya mṛto jāyati mānuṣaḥ
    mānuṣatvam anuprāpya kṣīṇāyur upapadyate
106 pāpāni tu naraḥ kṛtvā tiryag jāyati bhārata
    na cātmanaḥ pramāṇaṃ te dharmaṃ jānanti kiṃ cana
107 ye pāpāni narāḥ kṛtvā nirasyanti vrataiḥ sadā
    sukhaduḥkhasamāyuktā vyādhitās te bhavanty uta
108 asaṃvāsāḥ prajāyante mlecchāś cāpi na saṃśayaḥ
    narāḥ pāpasamācārā lobhamohasamanvitāḥ
109 varjayanti ca pāpāni janmaprabhṛti ye narāḥ
    arogā rūpavantas te dhaninaś ca bhavanty uta
110 striyo 'py etena kalpena kṛtvā pāpam avāpnuyuḥ
    eteṣām eva jantūnāṃ patnītvam upayānti tāḥ
111 parasvaharaṇe doṣāḥ sarva eva prakīrtitāḥ
    etad vai leśa mātreṇa kathitaṃ te mayānagha
    aparasmin kathā yoge bhūyaḥ śroṣyasi bhārata
112 etan mayā mahārāja brahmaṇo vadataḥ purā
    surarṣīṇāṃ śrutaṃ madhye pṛṣṭaś cāpi yathātatham
113 mayāpi tava kārtsnyena yathāvad anuvarṇitam
    etac chrutvā mahārāja dharme kuru manaḥ sadā


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